बिहार विधानसभा चुनाव 2015 का एलान होते ही वर्षों तक एक थाली में खाने, एक भाषा बोलने और एक इशारे पर अपनी पार्टी के लिए जान की बाजी लगाने वाले नेता अब कुर्सी के लिए जानी दुश्मन की तरह एक दूसरे से लड़ रहे है।
विधानसभा के चुनाव में पांच प्रमुख राजनीतिक दल .. अपनो.. से ही परेशान हैं। सभी दलों के मुखिया को अपनों के बागी होने का संकट झेलना पड़ रहा है। सभी राजनीतिक दलों में पहले सीट और इसके बाद उम्मीदवारों के चयन को लेकर भारी घमासान हुआ है।
इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ,जनता दल यूनाइटेड ,राष्ट्रीय जनता दल,लोक जनशक्ति पार्टी और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा में अपनों से परेशानी की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है ।
राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद लगातार बीजेपी सरकार पर तंज कसते रहते है।बीजेपी के द्वारा बिहार में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं किए जाने पर लगातार बोलते रहते है ,अपने हर भाषण में वो मोदीजी पर वार करते है ,और कहतें ही कि
, बिहार के विकास के लिए ‘गुजरात मॉडल’की जरूरत नहीं है.
बिहार में राजद, कांग्रेस और जनता दल यूनाइटेड के महागठबंधन विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुका है। विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद से ही लालू यादव फेसबुक और ट्विटर पर सक्रिय हो गए हैं और विरोधियों पर निशाना साधने के लिए सोशल साइटो का जमकर प्रयोग कर रहे हैं।
लालू यादव पहली बार 1990 में मुख्यमंत्री बने और दूसरी बार 1995 में
मुख्यमंत्री बने ।आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने कहा है कि उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया जाए तो भी वे गरीबों के हित की बात करते रहेंगे।
लालू जी तो यह भी बता दीजिये आपनें मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार के गरीबो के लिए क्या पुण्य कार्य किये थे आप तब भी जाति आधारित राजनीती करते थे और आज के समय में भी वही कर रहे है।
बिहार प्रान्त का सबसे बड़ा भ्रस्टाचार घोटाला वो भी आपके ही नाम है ,जिसमें पशुओं को खिलाये जाने वाले चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपये सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके निकाल लिये गये।सरकारी खजाने की इस चोरी में कई लोगों के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव व पूर्व मुख्यमन्त्री जगन्नाथ मिश्र पर भी आरोप लगा।इस घोटाले के कारण आप को मुख्यमन्त्री के पद से त्याग पत्र देना पड़ा. लेकिन राजनीति के माहिर तो आप शुरू से ही रहे आप ने अपनी जगह अपनी बीबी राबड़ी देवी को कुर्सी सौंप कर स्वयं ही सबसे बड़ा सबूत पेश कर दिया इस घोटाले के चलते आप कई बार जेल भ्रमण भी कर चुके है। लोकसभा की सदस्य्ता भी आप गवा चुके है।
बिहार में पहले दौर का मतदान 12 अक्टूबर को है। हर पार्टी महिलाओं को लुभाने की पुरजोर कोशिश में लगी हुई है ,क्योंकि बिहार में औरतें बड़ी तादाद में वोट देती हैं। बिहार की सियासत में पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी भी हुआ हो लेकिन इसके बावजूद बिहार में महिलाओं की पहली पसंद हैं नीतीश कुमार। महिलाओं में सबसे लोकप्रिय नेताओं में नीतीश कुमार ने अपनी जगह बना रखी है ,लेकिन एक बात को लेकर महिलाओं में नितीश कुमार के ख़िलाफ़ असंतोष भी है ,कि नितीश जी ने लालू के साथ जाकर ठीक नहीं किया है।
बिहार की जनता अब साफ़ सुथरी राजनीती चाहती है, लोगों का मानना है ,कि इस बार चुनावों में जाति का नहीं बल्कि विकास का सिक्का चलेगा। बिहार वासियों का अब एक ही सुर है ,जो विकास के बारे में बात करेगा, इलाकों की बेहतरी कर सभी सहूलियतें लाएगा जनता उसी की होगी।अपने काम काज के दौरान नीतीश की सरकार ने स्कूली बच्चों को पोशाकों से लेकर किताबें और कई तरह की सहूलियतें दी हैं,जिससे माना जा रहा है कि जनता जब वोट करेगी तो इन बातों को ध्यान में रख कर करेगी।
जनता के मन में एक सवाल है जो उन्हें सोचने समझने पर मजबूर कर रही है ,की आखिर ‘महागठबंधन से पहले लालू और नीतीश तो एक दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन थे, वो कैसे एक हो गए, क्या कुर्सी के लिए कोई इंसान इतना गिर सकता है। नीतीश की छवि राजनीति में जितनी साफ़ सुथरी है लालू की उतनी ही मैली है । महिला मतदाताएं लालू के राज या कहें जंगल राज को वो लोग अभी तक नहीं भूला पायी है। इसलिए नीतीश को पूरा समर्थन करने में इस बार हिचकिचाहट हो रही है ,की कही फिर बिहार में जंगलराज वापस न आ जाए।
महिलाओं का कहना है कि जो पार्टी महिलाओँ को सुरक्षा का भरोसा दिलवा पायेगी वही विजय हासिल करेगी। लोगों की जुबान पर यह भी है ,कि लालू के समय व्यवस्था में बहुत गड़बड़ी थी, इसलिए बिहार वासी अब नहीं चाहते कि वो दिन दुबारा लौट कर आए और बिहार फिर से जंगलराज के दल दल में जा गिरे। महिलाओं से नितीश कुमार ने एक और वादा किया है की वो शराब मुक्त बिहार करेंगे लेकिन अकड़े बताते है कि बिहार सरकार शराब से 2500
करोड़ रुपये की कमाई करता है .
क्या बिहार सरकार अपना 2500 कड़ोड़ का रेवेन्यू खोने को तैयार है, वो भी सिर्फ महिलाओं को खुश करने के लिए लगता तो नहीं है ?
कहीं यह केवल चुनावी वादे तो नहीं या केवल महिलाओ को खुश करने का एक जरिया। दरअसल बिहार में 46 फीसदी मतदाता महिलाएं हैं और बेशक बिहार एक पिछड़ा हुआ राज्य है , लेकिन यहां की महिलाएं अपना मत अपने हिसाब से देती हैं और इस चुनाव में भी वो एहम भूमिका निभाएंगी।
बिहार में छिड़े विधानसभा चुनाव के महासंग्राम में एक ओर जहां नेता अपने भाषणों में एक-दूसरे पर जमकर आरोप लगा रहे हैं, वहीं नारों के जरिए भी न केवल मतदाताओं को आकर्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे पर निशाना भी साधा जा रहा है।
चुनाव में नारों का अपना महत्व है और इसको राजनेताओं और राजनीतिक दल के लोग बखूबी जानते है।राजनीतिक दल कम शब्दों में अपनी बात कहने और लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए चुनाव प्रचार के दौरान नारों का सहारा लेते है.
राज्य में सत्तारूढ़ महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल ,कांग्रेस और जनता दल यूनाइटेड न केवल प्रचार के मामले में अपने सहयोगी दलों से आगे नजर आ रहा है, बल्कि विपक्षियों पर हमला करने के लिए आये दिन नए नए नारे का उपयोग कर रही है।
जद (यू) के नारे : ‘झांसे में न आएंगे, नीतीश को जिताएंगे’, ‘आगे बढ़ता रहे बिहार, फिर एक बार नीतीश कुमार’, ‘बिहार में बहार हो नीतीश कुमार हो।’
महागठबंधन के घटक राजद के नारे : ‘न जुमलों वाली न जुल्मी सरकार, गरीबों को चाहिए अपनी सरकार’, ‘युवा रूठा, नरेंद्र झूठा’ तथा ‘युवा-युवती भरे हुंकार कहां गया हमारा रोजगार।’
महागठबंधन की तीसरी घटक कांग्रेस चुनाव प्रचार के मामले में भले कमजोर नजर आ रही हो, लेकिन भाजपा पर हमला बोलने के लिए उसने एक लंबे नारे का सहारा लिया है : ‘सूट-बूट और जुमला छोड़, थामकर कांग्रेस की डोर, चला बिहार विकास की ओर।’
भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन भी चुनावी नारे गढ़ने में पीछे नहीं है। ‘अपराध भ्रष्टाचार और अहंकार, क्या इस गठबंधन से बढ़ेगा बिहार’, ‘हम बदलेंगे बिहार, इस बार भाजपा सरकार’, ‘तेज विकास की चली पुकार अबकी बार भाजपा सरकार’ तथा ‘बिहार के विकास में अब नहीं बाधा, मोदी जी ने दिया है वादे से ज्यादा’ जैसे नारों के साथ भाजपा मतदाताओं में पैठ बनाने की कोशिश में है। महागठबंधन पर तंज कसते हुए भाजपा ने एक और नारा गढ़ा है ‘भाजपा करेगी पहला काम जंगलराज पर पूर्ण विराम।’
राजग के घटक दल में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी भी अपने नेताओं के नेतृत्व में नारा देते हुए मतदाताओं को रिझाने में जुटी है। लोजपा का नारा है ‘ये ही चिराग है जो घर-घर रोशन करेगा, आओ चलें चिराग के साथ मिलकर बनाएं नया बिहार’ के जरिए चुनाव मैदान में उतर चुकी है।
राजग में शामिल अन्य दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने ‘नया बिहार बनाएंगे, लालू-नीतीश को भगाएंगे’ के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में है।
छह वामपंथी दलों के साथ मिलकर वाम मोर्चा बनाकर चुनाव मैदान में उतरी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने वामपंथ का झंडा बुलंद करते हुए ‘न मोदी न नीतीश सरकार वामपंथ की है दरकार’ तथा ‘मोदी-नीतीश धोखा है, परिवर्तन का मौका है’ जैसे नारों से अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कवायद में है।
बीजेपी के लिए भी बिहार विधानसभा 2015 का चुनाव नाक का सवाल बना हुआ है ,मोदीजी के सपने से जनता खुद को जोड़कर भी देख रही है और खुद मोदीजी भी लगातार चुनावी दौरे करने से भी पीछे नहीं हट रहे है.
बहरहाल, राज्य में चुनाव प्रचार अब धीरे-धीरे जोर पकड़ता जा रहा है और किस पार्टी का नारा मतदाताओं को सबसे ज्यादा आकर्षित करता है, इसके लिए अभी और इंतज़ार करना पड़ेगा।
बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए पांच चरणों में 12 अक्टूबर से पांच नवंबर के बीच मतदान होगा,और सभी सीटों की मतगणना दिवाली से ठीक तीन दिन पहले आठ नवंबर को होगी।
देखना दिलचस्प होगा की दिवाली में किसके घर जीत की खुशी के दिए जलेंगे और पटाखे फोड़े जायेंगे और किस पार्टी के घर या दफ्तर में दिवाली के दिन भी अँधेरा होता है।
यह मेरे खुद के विचार थे जो मैनें कुछ समय में देखा ,सुना, समझा और पढ़ा है।
बाद बाकि इंतज़ार मुझे भी है की बिहार निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो और एक नए बिहार का सपना हमारा साकार हो पाए।
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