Sunday 30 March 2014

किसानों की दुरदशा


देश में चुनाव कि तैयारियां  पूरे जोर शोर से हो रही है ,लेकिन इसमें न किसान कही दिख रहा है ,और न ही किसानों से जुड़े मुद्दे। भारत कि 60 प्रतिशत आबादी कृषि और उससे जुड़े उद्योगों पर निर्भर करती है। देश का पेट पालने वाले किसानों पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। पिछले कुछ सालों के आकड़े बताते हैं ,कि पांच लाख किसानों ने आत्महत्या की है ,जो देश के लिए चिंता का सबब है। 

देश के 42 प्रतिशत किसान अब खेती छोड़कर अन्य उद्योगों में जाना चाहते हैं ,क्योंकि खेती में अब पहले जैसा लाभ नहीं रह गया है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग से भी मिट्टी कि उर्वरता नस्ट हो रही है। रासायनिक तत्वों के अधिक उपयोग ने खेतों को जहरीला कर दिया है,जिससें खेती प्रभावित हो रही है। खेतों से जीवनयापन तभी सम्भव है ,जब मिटटी ,पानी ,जैव विविधता और खेती के नए तरीकों का विकास होगा। इसके साथ ही कम या ज्यादा वर्षा ,असमय वर्षा और जलवायु से भी प्रभावित हो रही हैं। 

आज दुनिया भर के देशों  में कृषि के लिए आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है ,लेकिन हमारे देश में इसकी शुरुआत भी नहीं हो सकी है। किसानों को ट्रैक्टर ,फसल काटने कि मशीनें भी आसानी से नहीं मिल पाती है। सरकार को चाहिए की वह ऐसे यंत्रों का आयत शुल्क ,उत्पादन शुल्क पर सब्सिडी उपलब्ध करवाए जिससे छोटे किसान भी उपकरणों को आसानी से खरीद सकें। 

आज के हालात में 28 प्रतिशत किसानों को ही बैंक ऋण मिल पाता  है ,क्योंकि उनके पास अपनी ज़मीन कि रजिस्ट्री है ,छोटे किसानों को बैंको से ऋण भी नहीं मिलता है। लगभग 60 से 70 प्रतिशत किसान आज कर्ज़ में डूबे हुए हैं ,या तो खेती के लिए निजी फाइनेंसरों से ऋण उठातें हैं ,जिनका ब्याज बहुत ज्यादा होता है। जब भी सामूहिक बीमा, स्वाथ्य बीमा या पेंशन की बात आती है ,तो किसानों को नजरअंदाज किया जाता है। पेंशन की रकम सम्मानजनक होनी चाहिए ,जिससे गुजारा आसानी से हो सकें। साल में बजट सत्र के दौरान एक कृषि बजट भी पेश हो जिससे गरीब किसानों  को फायदा पहुँचे। 

किसानों कि जरूरतें पूरा करने का वक़्त आ गया है ,लेकिन इस और किसी भी राजनीतिक पार्टियों का ध्यान नहीं जाता है। किसानों को अपने वोट की कीमत अब समझनी होगी। साथ ही एकजुट होकर राजनीतिक दलों पर दबाव भी बनाना जरुरी है, अगर अब किसान अपनी वोटों की कीमत नहीं समझे तो देश की अर्थव्यवस्था के हाशिए पर पहुँचे किसान देश कि राजनीती में भी हाशिए पर चलें जाएंगे। 

::::::::: सुगन्धा झा 


Tuesday 25 March 2014

"दल बदलू नेता "

चुनाव नजदीक आतें ही देश में नेता अपना दल बदलने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं। 
जिसमें साल 2014 का लोकसभा चुनाव और भी रोमांचक होने वाला है,क्योंकि इस बार कि राजनीती मुद्दों पर नहीं बल्कि चेहरा विशेष की होकर रह गयी है। 
16 वी लोकसभा चुनाव में कई बड़े दिग्गजों ने अपनी पार्टी साथ ही अपनी सीट भी बदली हैं। चुनाव नजदीक आते ही तमाम नेताओं में जनता के हिमायती दिखने कि होड़ लग जाती हैं। इन नेताओ के व्यवहार और बोलचाल से ऐसा लगने लगता है, कि कुर्सी पाते  ही जनता के दुखों पर कोई जादुई छड़ी घुमाएंगे और सब दुःख दूर कर देंगे। 

लेकिन एक बात और है,कि इतने सालो के बावजूद यह लोगं आज भी जाति,धर्म ,संप्रदाय ,और क्षेत्र कि राजनीती से ऊपर नहीं उठ पाये हैं। आरोप प्रत्यारोप तो अपने चरम पर ही हैं ,इन सबके बीच विकास के मुद्दें पीछे रह गये हैं और जीतने कि चाहत आगे आ गई है। 

सीटों कि दावेदारी में यह खेल खुलकर सामने आ जाता है ,आलाकमान भी बस नेताओं पर दबाव बनती है ,कि सीटें जीतकर लाओं। सचमुच देश के दिशानिदेशक देश को दिशा देने में असफल हैं ,और अपनी सन्तुष्टि के लिए राजनीती करके देश को बरबाद करने पर तुलें हैं। 

लोकतंत्र के इस पड़ाव पर आम आदमी क्या करें और क्या नहीं यह प्रश्न उठना लाजिमी है ,आखिर क्यों हमारे नेताओं को चुनाव के वक़्त ही जनता कि याद आतीहैं ?
पांच साल तक वह जनता से दूरी बनाने में लगे रहते हैं। आखिर जनता किस वजह से इन नेताओं  का एतबार करें की कुर्सी मिलते ही यह भी और नेताओं कि तरह नहीं होंगे।                                                                                           

:==== सुगंधा झा 

Wednesday 19 March 2014

"राजनीती में युवा शक्ति "


2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सबसे अधिक युवा मतदाता भाग लेंगे। चुनाव आयोग के मुताबिक पहली बार दस करोड़ लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। चुनाव आयोग कोई भी आकड़ा जारी नहीं करता कि देश में कितने वोटर हैं ,लेकिन उसने इस बार यह बताया कि पांच साल में नए वोटरों में 18 ,19 साल वालो कि संख्या कितनी हैं। 

भारत के युवाओं का तेजी से राजनीती कि तरफ झुकाव बढ़ा है ,इनमें  से ज्यादा ऐसे युवा हैं। जो राजनीती में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं , या निभाने की सोच रहे हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों  में युवाओं ने अपने मताधिकार का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जिस वजह से मतदान का प्रतिशत  भी बढ़ा है। 

युवाओं को जगाने का काम अन्ना आन्दोलन ने बखूबी किया ,भ्रस्टाचार के खिलाफ जनलोकपाल के लिए अन्ना का आन्दोलन दिल्ली में हुआ।जिससें  लाखों  युवा जुड़े ,देश का हर नौजवान उस आंदोलन का गवाह बना।16 दिसंबर 2013 में दिल्ली गैंगरेप ने युवाओं को फिर  से सड़क पर उतरने को मजबूर कर दिया। इस घटना के बाद लाखों  युवक -युवतियां  दिल्ली कि सड़कों पर "निर्भया "के लिए इंसाफ कि लड़ाई लड़ने को फिर एकजुट हुए ,इसके बाद आम आदमी पार्टी युवाओं  को राजनितिक मंच देने में कामयाब हुई। 

दिल्ली में आम आदमी पार्टी का उदय भी युवाओं  के जोश का परिणाम हैं, दिल्ली में आम आदमी पार्टी को सबसे ज्यादा युवाओ का 17 ,18 फीसदी मत प्राप्त हुआ। जिससे यह सवाल उठना लाजमी हैं। 
आखिर युवाओं  ने आम आदमी पार्टी को ही इतनी तरजीह क्यों दी ? 

शायद इसलिए क्योंकि  आम आदमी पार्टी ने युवाओं  को राजनीती में आने का और अपनी भूमिका निभाने का मौका दिया। पार्टी ने सोशल मीडिया का व्यापक इस्तेमाल किया जिससे प्रभावित  हो कर बड़ी संख्या में युवा इस पार्टी से जुड़े। आम आदमी पार्टी अपने उठाए मुद्दों कि बदौलत युवाओं को अपनी और खींचने में कामयाब रही। जिसमें भ्रस्टाचार ईमानदारी , महँगाई ,पानी महिला सुरक्षा अहम मुद्दे थें। 

राजनितिक पार्टियां युवाओं का इस्तेमाल चुनाव प्रचार या पार्टी के कार्यों में करती रही हैं ,लेकिन जब बात चुनाव लड़ने की आती हैं  तो कम अनुभव का हवाला दिया जाता है। लेकिन अब की  बार यह बदलाव नजर आ रहा है ,बड़ी राजनितिक पार्टियां भी अपने से युवाओं को जोड़ने का काम कर रही हैं। अब सभी दलों को पता चल चुका है।युवाओं कि उपेक्षा करके आप आगे नहीं बढ़ सकते हैं। इसलिए सभी बड़ी पार्टियां युवाओं को अपने साथ जोड़ने का काम कर रही है ,साथ ही सोशल मीडिया का भी जम कर इस्तेमाल करती हैं।

नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी युवाओं से सीधा संवाद कर रहे हैं। बड़े नेता
कॉलेज विशवविद्यालय में युवाओं को सम्बोधित कर रहे हैं। राजनीती में बड़ा बदलाव युवा शक्ति कर सकता है ,क्योंकि अब सभी को पता चल चुका है, कि युवा शक्ति के बिना देश का विकास सम्भव नहीं वो इसलिए क्योंकि आज का युवा कल का भविष्य हैं।
——सुगंधा झा

Monday 17 March 2014

रंगों का त्यौहार होली


होली रंग विरंगा मस्ती भरा त्यौहार हैं। 

इस दिन लोंग अपने सारे  गीले शिकवे भुलाकर एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं ,साथ ही गले मिलते हैं। फाल्गुन मास की  पूर्णमासी को यह त्यौहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। होली के साथ अनेक पौराणिक  कथाएँ जुड़ी हुई हैं। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है।  

होलिका नाम कि एक राक्षसी थी,जिसे भगवान  शिव से वरदान प्राप्त था कि अग्नि  उसे जला नहीं सकती। 
लेकिन उसनें  अपने वरदान का दुरूपयोग किया। होलिका के भाई हिरण्यकश्यप का पुत्र था प्रहलाद जो भगवान         विष्णु का परम भक्त था, जिससे हिरण्यकश्यप प्रहलाद से नफरत करता था साथ ही उसे मरना चाहता  था। उसने अपनी बहन होलिका को आज्ञा दी कि वह प्रह्लाद को अपनी गौद में बिठा कर अग्नि में जला दें। लेकिन भगवान  विष्णु की  कृपा से प्रह्लाद तो बच गया किन्तु होलिका जल कर भस्म हो गई।  शिवजी ने होलिका को आशीर्वाद दिया ,तब से होलिका दहन पर्व के रूप में मनाया जाने लगा ,साथ ही शिव ने कहा कि  उस भस्म को जो व्यक्ति अपने शरीर में लगाएगा उसे शुभ  फल प्राप्त होगा ,ऐसा  अनेक पुराणों  में वर्णित हैं। 

होली त्यौहार उत्तर  भारत  में विशेष  रूप से मनाया जाता है। भारत के अनेक प्रांतो में लोंग होली विभिन्न रूप से मानते हैं,साथ ही यह त्यौहार नई  फसल होने  कि खुशी  में भी मनाया जाता  हैं। 

यह कथा इस बात का संकेत देती है कि ,आज भी सच्चाई कि जीत होती है।

आज भी पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता हैं और अगले दिन सब लोंग एक दूसरे पर रंग डालते है और गुलाल लगाते  है। यह रंगो का त्यौहार है इस दिन लोंग  अपने दोस्तों रिश्तेदारों के साथ जमकर होली खेलते हैं। 
होली के दिन घर कि महिलाएं तरह तरह के व्यंजन बनाती  हैं ,जिसमें गुजिया ,मालपुआ,कांजी ,ठंडाई बेहद स्पेशल खानपान हैं। शाम को सभी स्नान करके नए वस्त्र पहन कर नाते रिश्तेदारों  से मिलने जाते हैं ,साथ ही खूब नाच गाना होता है। 

ब्रज की होली ,मथुरा की  होली ,वृंदावन की  होली ,बरसाने की होली ,काशी  कि होली पुरे उत्तर भारत में मशहूर है। होली उत्सव मनाने के लिए देशी विदेशी पर्यटक भी ब्रज पहुचते हैं ,सब मिलकर इस उत्सव का लुत्फ़ उठाते  हैं। 
--सुगंधा झा 

Thursday 6 March 2014

बदहाल प्रदेश (उत्तर प्रदेश )


उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के आने का एक ही कारण था ,बसपा के राज से छुटकारा। आज उत्तर परदेश में अपराधियों  के हौसले बुलंद है। परंतु सपा सरकार ने भी जनता कि उम्मीदों को छला हैं। जिन उम्मीदों  के साथ लोगों ने सपा को सत्ता सौपी और युवा मुख्यमंत्री का चुनाव किया कि हो सकता है ,यह प्रदेश में शांति, न्याय व्यवस्था को सुनिश्चित करेंगे ऐसा दीखता नहीं है। 

युवा मुख्यमंत्री के शासन  में उनके अपने ही कार्यकर्ता बेलगाम हो गये ,जिसके चलते राज्य में गुंडागर्दी बढ़ी हैं। 
स्थिति यह है कि अधिकतर अपराधों के तार किसी न किसी रूप से सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़ते  हैं।कभी मुजफ्फरनगर में दंगे तो कभी गन्ना किसानों का आक्रोश ,दंगे के बाद जब हल्ला मचा तो कुछ नेताओं को दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। लेकिन यहा भी प्रदेश सरकार  ने पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाया। अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई ठोश कदम  नहीं उठाए। 

दंगा पीड़ितो को रहत मिले न मिले ,लेकिन सूबे कि सरकार को सैफई  में महोत्सव करना जरुरी था ,तो आधे दर्जन से ज्यादा नेता विदेश दौरे पर रवाना हुए। आज़म खा साहेब कि भैंसे  गुम  हुई, तो प्रदेश के मंत्री साहेब ने s.h.o को लाइन हाज़िर कर दिया। 
हाल ही में  सपा विधायक (इरफ़ान सोलंकी )कि मेडिकल छात्रों के साथ हाथापाई हुई ,तो सरकार ने जांच  का हवाला दिया। 

जिसकी वजह से डॉक्टरों कि हड़ताल हुई ,तीन  दर्जन से ज्यादा लोग वगैर इलाज बे मौत  मर गये ,इसका ज़िम्मेदार कौन हैं ?
मुलायम सिंह हिदायत देते रहते हैं ,अपनी सरकार के मंत्रियों  को जो सिर्फ एक दिखावा हैं, और कुछ नहीं। 

जनता बेवज़ह  ही पुलिस को दोष देती रहती है ,अगर सत्ता ही निरंकुश हो जाए ,तो प्रशासन  क्या करेगा ?
भारत जैसे देश के इतने बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में क्या सत्ता का यही मतलब है। आखिर कैसे नेता बनते ही कुर्सी मिलते ही यह लोग इतने संवेदनहीन हो जाते हैं।
 आज उत्तर प्रदेश कि जो स्थिति है उस जिम्मेदारी से अखिलेश सरकार खुद को बचा नहीं सकती हैं। 
सत्ता नशा का नाम नहीं ,बल्कि ज़िम्मेदारी का नाम हैं।
सुगंधा झा