Thursday 17 October 2013

"डेंगू का डंक "

                                                                                                                                                          दिल्ली   में   डेंगू   का   आतंक   दिन-  ब  -  दिन  बढ़   रहा   हैं ,  अभी  हाल  ही  में  इसके  मरीजों  की  संख्या  दो  हजार तक  पहुच  चुकी  है। हालात    ये  है     कि  दिल्ली   का    कोई    भी   इलाका  ऐसा  नहीं  जो  डेंगू  की    चपेट    में  न  हो  , आज  डेंगू  की  वजह  से  जनता  परेशान  हैं  , वहीं इससे  निपटने  के  बजाय   दोनों  पार्टियां    इसे    चुनावी    मुद्दा   बनाने   की  जुगत    में  लगी   हैं।  डेंगू   का  प्रकोप  बढ़   रहा  है  ,  दूसरी  और   सरकार   एक   दुसरे   पर  आरोप  प्रत्यारोप  में  लगी  है ।  आकड़े  बताते  हैं  कि  1970  से  पहले  सिर्फ  नौ  देशों   में   ही  डेंगू की   महामारी  फैली   थी ।   25  अरब  या   दुनिया   के   चालीस   फ़ीसदी   लोंगो   को   डेंगू   का   खतरा   है ,पांच   से   दस   करोड़    लोंगो  को    हर   साल   गंभीर   डेंगू   का    संक्रमण   होता    हैं।  सौ   देशों   में    महामारी   का   रूप   ले   चुका   है  ,  हर   साल   12500   लोंगो   की   मृत्यु   डेंगू   से   होती   हैं ।  आज   स्थिती   यह   है   कि  दिल्ली   में   डेंगू   के    डर   के   साए   में   लोग  जी   रहे   है ,  दिल्ली   का   कोई   भी  इलाका   आज   डेंगू   से   मुक्त   नहीं   हैं  ।   डेंगू  से  बचाव  के लिए  सबसे   ज्यादा   साफ   सफाई  का  पूरा  ध्यान रखना   चाहिए    और   सतर्क   रहने   की   जरुरत   हैं। अस्पतालों    में   मरीजों    के   लिए   बेड   तक    उपलब्ध   नहीं   ,ब्लड बैंक   में    ब्लड   नहीं   मिलता   है   ,   इससे    पहले   की   हालात   बद  से  बदतर    हो   जाए   । दिल्ली    सरकार   और   आम  जनता   दोनों    को   मिलकर    ठोस    कदम   उठाने    की जरुरत  हैं  ,  इस   साल   दिल्ली   सरकार   ने   डे गू   के   खिलाफ़    जनजागरण   अभियान    भी   ठीक   से   नहीं  चलाया।  कई   जगह   से   मृत्यु    की   खबरें    आने   के   बाद   भी    फोगिंग  और   नालियों   की   सफाई   नहीं  की गयी ।  क्या   सरकार   सिर्फ   जनता   से   टैक्स   वसूलना   ही   जानती   हैं   ?  जब   फर्ज   निभाने   की बारी   आती   है  ,  तो   ऐसा   लगता  है   सो   जाती   है । लेकिन   इस   साल   उसे   यह   बेफिक्री  कहीं   भारी  न   पर   जाए  ,  क्योंकि   चंद    महीनों    में    ही   विधानसभा   चुनाव   होने  वाले हैं।                                          सुगंधा झा

Wednesday 9 October 2013

''मोदी युग की शुरुआत''


भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। एक दौर था,जब भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृषण आडवानी की तूती बोलती थी ,आज अटल जी बीमारी के चलते सक्रिय राजनीति से संन्यास ले चुके हैं ,वहीं अडवानी सक्रिय होने के बावजूद पार्टी में हाशिये पर पहुँच चुके हैं। भाजपा के लौह पुरुष कहलाने वाले अडवानी मोदी के बढ़ते कद से खुश नहीं हैं। जब मोदी को प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की घोषणा राजनाथ सिंह ने की ,तब उस बैठक में अडवानी शामिल नहीं थे ,बल्कि उन्होंने नाराजगी भरी चिठ्ठी जरुर भेज दी। कुछ लोग मानते हैं कि मोदी वह सपना देख रहे है ,जो कभी पूरा नहीं होगा क्योंकि पार्टी के कई वरिष्ठ नेता मानते हैं कि, मोदी का एजेंडा पूरे भारत में लागू नहीं हो पाएगा। सच जो भी हों लेकिन वोटों की राजनीती में पिसती आम जनता है। अब देखना यह है कि क्या अकेले मोदी के दम पर भारतीय जनता पार्टी अपना 2014 का मिशन पूरा कर पाती है या नहीं। आजकल पूरा मीडिया मोदी पर मेहरबान है ,लेकिन जिस तरह से मोदी को लेकर हर तरफ अतिरंजना दिखाई देती है ,उससे शक होता है कि कही मोदी का हश्र भी अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल जैसा न हो जाए। रणनीति चाहे विधानसभा चुनावों की हो या लोकसभा के मिशन 2014 की केंद्र में नरेंद्र मोदी ही होंगे। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ व भाजपा के नेताओं के एक वर्ग को पूरा भरोसा है की मोदी पर लगाए गए दांव से विधानसभा चुनाव में भी उसे सफलता मिलेगी और लोकसभा में न या रिकॉर्ड बनेगा। मोदी के साथ भाजपा की रणनीति साफ है ,मोदी अपने हिन्दुत्वादी चेहरे से कांग्रेस के भ्रष्टाचार व कुशासन पर भी हल्ला बोलेंगे। मोदी का लक्ष्य 18 से 35 साल का युवा मतदाता है। गुजरात के विकास की कहानियां सुनकर यूपीए सरकार के पिछले चार सालों के कार्यकाल से त्रस्त मध्य व युवा वर्ग मानने लगा है की केवल मोदी ही देश की कायापलट कर  सकते हैं। अब देखना है की अटल, अडवानी से मोदी युग में पहुचीं भाजपा किस तरह की राजनीती करती हैं।
--सुगंधा झा